पंजाब दैनिक न्यूज़ (N K राणा ) इस साल चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) की शुरुआत शनिवार, 2 अप्रैल से हो रही है. 2 अप्रैल को शुरू होने वाली चैत्र नवरात्रि रविवार 10 अप्रैल तक चलेगी. इस बार नवरात्रि में देवी मां अपने भक्तों के यहां घोड़े पर सवार होकर आएंगी और नवरात्रि की समाप्ति पर भैंसे पर सवार होकर देवलोक वापस लौट जाएंगी. विश्व प्रसिद्ध चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार घटस्थापना का उत्तम मुहूर्त 2 अप्रैल 2022 को सुबह 7:45 बजे से लेकर 9:15 बजे तक रहेगा. विश्व प्रसिद्ध चौघड़िया मुहूर्त अनुसार “शुभ “का सुप्रसिद्ध चौघड़िया मुहूर्त उपलब्ध होगा. जिनमें सरकारी, गैर-सरकारी, नौकरी पेशा लोगों और बीमारी से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए बहुत शुभ हैं और उन्नति के रास्ते खोलेंगे.
इसके बाद दोपहर 12:15 बजे से दोपहर 3:15 तक तीन बहुत ही शानदार चौघड़िया मुहूर्त “चर, लाभ, अमृत” उपस्थित होंगे. इसी समय से पहले 11:15 बजे से “अभिजीत” मुहूर्त भी चालू हो जाएगा. यह मुहूर्त व्यापारियों और नौकरीपेशा लोग, जिनके विवाह एवं परीक्षाओं मेंसे करनी चाहिए घट स्थापना
नवरात्री में घट स्थापना का बहुत महत्व है. नवरात्रि की शुरुआत घट स्थापना से की जाती है. कलश को सुख समृद्धि, ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है. कलश के मुख में भगवान विष्णु गले में रूद्र, मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है. नवरात्रि के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का घट में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है. इससे घर की सभी विपदा दायक तरंगें नष्ट हो जाती हैं तथा घर में सुख शांति तथा समृद्धि बनी रहती है.
घट स्थापना की सामग्री
जौ बोने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला मिट्टी का पात्र बिल्कुल साफ होना चाहिए, जिसमें कंकर आदि न हो. पात्र में बोने के लिए जौ (गेहूं भी ले सकते हैं). घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश या फिर तांबे का कलश भी इस्तेमाल किया जा सकता है. कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल, रोली, मौली, पूजा में काम आने वाली साबुत सुपारी, कलश में रखने के लिए सिक्का (किसी भी प्रकार का कुछ लोग चांदी या सोने का सिक्का भी रखते हैं), आम के पत्ते, कलश ढकने के लिए ढक्कन (मिट्टी का या तांबे का), ढक्कन में रखने के लिए साबुत चावल, नारियल, लाल कपड़ा, फूल माला, फल तथा मिठाई, दीपक, धूप-अगरबत्ती.
घट स्थापना की विधि
सबसे पहले जौ बोने के लिए एक ऐसा पात्र लें, जिसमे कलश रखने के बाद भी आस-पास जगह रहे. यह पात्र मिट्टी की थाली जैसा हो श्रेष्ठ होता है. इस पात्र में जौ उगाने के लिए मिट्टी की एक परत बिछा दें. मिट्टी शुद्ध होनी चाहिए. पात्र के बीच में कलश रखने की जगह छोड़कर बीज डाल दें. फिर एक परत मिट्टी की बिछा दें. एक बार फिर जौ डालें. फिर से मिट्टी की परत बिछाएं. अब इस पर जल का छिड़काव करें. अब कलश तैयार करें. कलश पर स्वस्तिक बनायें दिक्कत का समय है, उन लोगों के लिए इस शुभ समय में घट स्थापना के लिए अत्यंत शुभ एवं फलदायक है. इस समय घट स्थापना करने से व्यक्ति की समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति अवश्य ही देवी मां करेंगी.अब कलश को थोड़े गंगा जल और शुद्ध जल से पूरा भर दें.
अब कलश में साबुत सुपारी, फूल और सिक्का डालें. अब कलश में आम के पत्ते डालें. कलश में पत्तों को इस तरह से लगाएं ताकि उसका कुछ हिस्सा बाहर की ओर भी दिखाई दे. चारों तरफ पत्ते लगाकर ढक्कन लगा दें. इस ढक्कन में अक्षत यानि साबुत चावल भर दें. अब नारियल तैयार करें. नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर मौली बांध दें. इस नारियल को कलश पर रखें. नारियल का मुंह आपकी तरफ होना चाहिए. यदि नारियल का मुंह ऊपर की तरफ हो तो उसे रोग बढ़ाने वाला माना जाता है. नीचे की तरफ हो तो शत्रु बढ़ाने वाला माना जाता है, पूर्व की ओर हो तो धनहानि वाला माना जाता है. बता दें कि नारियल का मुंह वह होता है, जहां से वह पेड़ से जुड़ा होता है. अब यह कलश जौ उगाने के लिए तैयार किए गए पात्र के बीच में रख दें.
देवी मां की चौकी स्थापना और पूजा विधि
लकड़ी की एक चौकी को गंगाजल और शुद्ध जल से धोकर पवित्र करें.
चौकी को साफ कपड़े से पोंछकर उस पर लाल कपड़ा बिछा दें.
इसे कलश के दांयी तरफ रखें.
चौकी पर मां दुर्गा की मूर्ती अथवा फ्रेम युक्त फोटो रखें.
मां को लाल चुनरी ओढ़ाएं और फूल माला चढ़ाएं.
अब धूप, दीपक आदि जलाएं.
नौ दिन तक जलने वाली माता की अखंड ज्योत जलाएं. संभव न हो तो आप सिर्फ पूजा के समय ही दीपक जला सकते हैं.
अब देवी मां को तिलक लगाएं.
मां दुर्गा को वस्त्र, चंदन, सुहाग के सामान यानि हल्दी, कुमकुम, सिंदूर, अष्टगंध आदि अर्पित करें और काजल लगाएं.
मंगलसूत्र, हरी चूड़ियां, फूल माला, इत्र, फल, मिठाई आदि अर्पित करें.
प्रतिदिन श्रद्धानुसार दुर्गा सप्तशती के पाठ, देवी मां के स्रोत, दुर्गा चालीसा का पाठ, सहस्रनाम आदि का पाठ करें या सुनें.
अब अग्यारी तैयार कीजिए.
अब एक मिट्टी का पात्र और लीजिए. उसमें गोबर के उपले को जलाकर अग्यारी जलाएं. घर में जितने सदस्य हैं, उन सदस्यों के हिसाब से लौंग के जोड़े बनाएं. लौंग के जोड़े बनाने के लिए आप बताशों में लौंग लगाएं यानि एक बताशे में दो लौंग, ये एक जोड़ा माना जाता है. जो लौंग के जोड़े बनाए हैं फिर उसमें कपूर और सामग्री चढ़ाएं और अग्यारी प्रज्वलित करें.
रोजाना (प्रतिदिन) देवी मां की सपरिवार आरती करें.
पूजन के उपरांत वेदी पर बोए अनाज पर थोड़ा-सा जल अवश्य छिड़कें.
रोजाना देवी मां का पूजन करें तथा जौ वाले पात्र में जल का हल्का छिड़काव करें. जल बहुत अधिक या कम न छिड़कें. जल इतना हो कि जौ अंकुरित हो सके. ये अंकुरित जौ शुभ माने जाते हैं. यदि इनमें से किसी अंकुर का रंग सफेद हो तो उसे बहुत अच्छा माना जाता है.
चैत्र नवरात्र के दिन और तिथियां
नवरात्रि दिन 1 (प्रतिपदा) घटस्थापना: मां शैलपुत्री पूजा, 2 अप्रैल 2022
नवरात्रि दिन 2 (द्वितीया) मां ब्रह्मचारिणी पूजा, 3 अप्रैल 2022
नवरात्रि दिन 3 (तृतीया) मां चंद्रघंटा पूजा, 4 अप्रैल 2022
नवरात्रि दिन 4 (चतुर्थी) मां कूष्मांडा पूजा, 5 अप्रैल 2022
नवरात्रि दिन 5 (पंचमी) मां स्कंदमाता, 6 अप्रैल 2022
नवरात्रि दिन 6 (षष्ठी) मां कात्यायनी पूजा, 7 अप्रैल 2022
नवरात्रि दिन 7 (सप्तमी) मां कालरात्रि पूजा, 8 अप्रैल 2022
नवरात्रि दिन 8 (अष्टमी) मां महागौरी, दुर्गा महा अष्टमी पूजा, 9 अप्रैल 2022
नवरात्रि दिन 9 (रामनवमी) मां सिद्धिदात्री नवरात्रि पारण, 10 अप्रैल 2022
